जब सूरज की किरणों ने जगाया तुमको,
तुम्हारी अंगडाई इतनी खूबसूरत थी,
ख़ामोशी से तेरे चेहरे को ताकता रहा,
अब तुम्हे मेरी क्या ज़रुरत थी?
जब तुमने किताबों से दोस्ती कर ली,
तुम्हारी आँखों ने हज़ारों कहानियां पढ़ीं,
कभी आंसूं टपके तो कभी खुशियाँ छलकी,
अब मेरे कोरे कागज़ सी ज़िन्दगी से तुम क्या पढ़ती?
जब उसे उसका प्यार मिला,
मुझे मेरी मौत मिली,
वोह चल पड़ी अपनी ज़िन्दगी जीने,
अब तो मेरी रूह को भी बदनसीबी मिली |
No comments:
Post a Comment