दोराहे पर है अब ज़िन्दगी,
सोच रही है किस मोड़ पे मुड़े
एक तरफ है अपनों का साया,
तो दूसरी तरफ दुनिया की हैवानगी|
दोराहे पर हैं अब मेरे अपने अभी,
सोच रहा हूँ किसके साथ जियूं?
एक वोह जो मुझे खुश रखते हैं,
या वोह जिनको मैं कभी भी दुखी नहीं देख सकता?
दोराहे पर है उम्मीद मेरी,
सोचता हूँ कभी की रौशनी मिले,
एक तरफ अगर अँधेरा रहेगा,
तो दूसरी तरफ दिवाली के उजाले|
क्यों? यह बटवारा है दिलो में?
क्यों? यह हिस्से हैं ज़िन्दगी के?
धडकने भी चलती है टुकड़ों में,
और प्यार भी मिलता है मख्बरो में|
No comments:
Post a Comment