Saturday, June 23, 2012

शायद



जब  सूरज  जागता है क्षितिज  के पलंग  से,
तारे आसमान  में ओझल  हो जाते हैं.
डरते तो नहीं वोह रोशनी से,
पर नीली चादर दलदल  सी हो जाती है.
शायद इसी को सुबह कहते हैं.

जब ज़मीन  भीगता है बादल के अश्कों से,
एक  अजनबी खुश्बू महक  उठती है.
मिट्टी के फूल  तो नहीं खिलते हैं यहाँ.
पर दरारों को निर्वाण मिल  जाता है.
शायद इसी को बरसात  कहते हैं.

जब वक़्त गुज़रता है ज़िन्दगी से,
कुछ  पल  हमेशा याद रहते हैं.
हर मोड़ पे सताते ही रहते हैं,
पर आखिर में हँसा देती हैं.
शायद इसी को दोस्ती कहते हैं.

जब आँखें चमकती हैं किसीके आने से,
धड़कने थम  सी जाती हैं.
जिंदा तो रहते हैं साँसों के नाम  पे,
पर मरते रहते हैं उसकी यादों में.
शायद इसी को मोहब्बत कहते हैं.

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