वक़्त की अपनी रफ़्तार होती है
चलता है अपनी मन मर्ज़ी से ।
ना थमता है अपनों के लिए
ना भागती है खुदगर्जी से ।
वक़्त की अपनी पहचान होती है।
बनता है अपने ही दम पे,
और मिट जाता है अपने आप में ।
कभी तुम पे होती है मेहरबान, तो कभी हम पे ।
वक़्त की अपनी कहानी होती है।
लिखता है अपने ही अंदाज़ में,
और किरदार भी वोह खुद,
कभी कोरा कागज़, तो कभी गहरे राज़ में।
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