इंतज़ार था किसी के पैघाम का
दोस्त था मैं बस नाम का
मैं हार गया उसे याद कर के
अब मैं नहीं रहा उसके किसी काम का
आज हुए हम उनके भूले बिसरे गीत हैं
नाराज़गी में भी उनके एक मीत है
उम्मीद तो है उनसे एक मुलाक़ात की
सच तो ये है की हम उनके अतीत हैं
कल जब हम अकेले पड़ जाएंगे
उनके ज़ख्मो में अड़ जाएंगे
कोशिश करेंगे की हम मरहम बने
वरना उनके रगों में गड जाएंगे
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