बस कुछ दिन और हैं,
गायब हो जायेंगे इस जन्नत से,
उड़ जायेंगे इस घरोंदे से,
रहते थे हम जिन सपनो में ,
उन सपनो के बाहों से,
जुदा हो जायेंगे,
बस कुछ दिन और हैं,
सूनी पड़ जाएँगी ये रास्ते,
खामोश हो जाएँगी ये रातें,
बसते थे हम जिन बस्तियों में,
उन् खुशियों के पनाहों से,
तनहा हो जायेंगे,
बस कुछ दिन और हैं,
फीका पड़ जायेगा सारा खाना,
सूखा रह जायेगा हर पैमाना,
खाते थे हम जिस थाली में,
यादें भरे उन निगाहों से,
रूखे रह जायेंगे,
बस कुछ दिन और हैं|
No comments:
Post a Comment